बरहरवा रेलवे स्टेशन से एक-डेढ़ किलोमीटर की दुरी पर राजमहल की नीली पहाडियों की तलहटी में एक छोटी-सी पहाडी पर बना है- बिन्दुवासिनी मन्दिर। मन्दिर तक जाने के लिए यह है प्रथम प्रवेश द्वार।
बिन्दुधाम बरहरवा
विन्दुवासिनी मंदिर, बरहरवा (जिला- साहेबगंज, झारखण्ड) के कुछ छायाचित्र तथा उसके इतिहास आदि के बारे में संक्षिप्त जानकारियाँ और "पहाड़ी बाबा" के कुछ रोचक प्रसंग...
रविवार, 19 जुलाई 2009
"अक्षय कूप"
सीढियों के ठीक बगल में यह जो कुँआ आपको दिखेगा, इसके बारे में किंवदंती है कि एक बार इस क्षेत्र में सुखाड़ पड़ा था, सभी तालाब और कुँए सुख गए थे; तब "पहाडी बाबा" ने (जिनके बारे में आगे बताया जाएगा) माँ बिन्दुवासिनी का नाम लेकर एक 'बताशा' इस कुँए में डाल दिया था। तब से इस कुँए का पानी दुधिया और मीठा हो गया और इसका गर्मियों में सुखना भी बंद हो गया। आज लगभग पन्द्रह हजार लीटर जल प्रतिदिन इस कुँए से निकालकर बरहरवा के घरों में पहुंचाया जाता है। इतना ही नही, चैत्र के महीने में एक माह तक चलने वाले 'रामनवमी मेले' की जलापूर्ति भी इसी कुँए से होती है।
"द्वितीय प्रवेश द्वार"
"कल्प वृक्ष" और "द्वारपाल"
"महा काली"
"माँ विन्दुवासिनी"
बीच वाली प्रतिमा में "महाकाली" और "महादुर्गा" संयुक्त रूप से विराजमान हैं, जबकि उनकी दाहिनी ओर "महालक्ष्मी" तथा बायीं ओर "महासरस्वती" प्रतिष्ठित हैं। संयुक्त रूप से इन्हें "माँ विन्दुवासिनी" (बंगला प्रभाव के कारण "बिन्दुवासिनी") कहते हैं।
अब तो इस ग्रिल गेट के बाहर से ही पूजा करनी पड़्ती है.
'ग्रिल' पर उकेरी गयी कमल अर्पित करती और शंख बजाती नारी आकृतियाँ
"पिण्डी-दर्शन"
रामनवमी' २००७ से पहले माँ बिन्दुवासिनी का दर्शन इस रूप में होता था। पौराणिक कथा के अनुसार इस पहाड़ी पर सती के तीन बूंद रक्त गिरे थे। तब से उसी के प्रतीक-स्वरुप तीन शिलाओं का पूजन यहाँ होता आ रहा है।
वर्ष 2007 में पिण्डियों को चाँदी की प्रतिमाओं से ढक दिया गया था
वर्ष 2007 में पिण्डियों को चाँदी की प्रतिमाओं से ढक दिया गया था
बाद में ऐसी व्यवस्था की गयी कि चाँदी की प्रतिमाओं तथा पिण्डियों- दोनों के दर्शन साथ-साथ हों ।
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एक दुर्भाग्यजनक घटनाक्रम में वर्ष 2014 में चाँदी की प्रतिमायें चोरी चली गयीं
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यह दर्शन 2016 का है- पूर्ण शृंगार के साथ.
"शिव-पंचायत"
माँ बिन्दुवासिनी के बगल में ५ मन्दिर और बने हैं। एक में शिव अपनी पंचायत- विष्णु, दुर्गा, सूर्य और गणेश के साथ- स्थापित हैं।
टिपण्णी: 1. इन मंदिरों के अन्दर के विग्रहों के फोटो के स्थान पर द्वार पर बनी सुंदर पेंटिंग्स के फोटो दिए जा रहे हैं। हनुमान जी भी एक मन्दिर में "संकट-मोचक" के रूप में विराजमान हैं, उनका फोटो अभी नहीं दिया जा सका।2. इन कलाकृतियों के चित्रकार के रुप में "वैद्यनाथ, चित्रपुरी, पाकुड़" लिखा है. पाकुड़ बरहरवा का पड़ोसी शहर है, वहाँ का 'चित्रपुरी' स्टूडियो एक जमाने में प्रसिद्ध था. यह स्टूडियो चित्रकार "वैद्यनाथ" का था.
"योगेश्वरी माँ"
"नवधा भक्ति"
"पहाड़ी बाबा"
"महावातर बाबा"
महावातर बाबा (त्र्यम्बक बाबा या बाबाजी महाराज) अजर हैं, अमर हैं। हिमालय में कभी-कभार वे देखे जाते हैं। उन्होंने आदि शंकर और कबीर को भी दीक्षा दी है। आज भी पुकारने पर किसी-न-किसी रूप में वे सामने आते हैं। उन्होंने आधुनिक समय के हिसाब से लोगों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए उन्हें दीक्षा देने के लिए लाहिड़ी महाशय को चुना था। लाहिड़ी महाशय पिछले जन्म में उनके शिष्य थे।
"लाहिड़ी महाशय"
पहाड़ी बाबा के गुरु (सत्यानन्द गिरी) के गुरु (स्वामी युक्तेश्वर गिरी) के गुरु थे श्री श्री लाहिड़ी महाशय। आप बनारस में रहते थे। आपको "क्रियायोग" के प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है। आपकी शिक्षा थी कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए 'गृहस्थ' जीवन त्यागने की जरुरत नही है। वास्तव में यही शिक्षा देने के लिए 'महावातार बाबा' ने आपको चुना था।
आप पिछले जन्म में भी महावातार बाबा के शिष्य थे। रेलवे में नौकरी के दौरान जब आप रानीखेत में तैनात थे, तब महावातार बाबा स्वयं आपको बुलाकर एक गुफा में ले गए थे। उन्होंने आपको आपके पिछले जन्म के कमण्डल, आसन आदि दिखलाये। जब उन्होंने आपके मस्तक को छुआ, तो आपको सब याद आ गया।
"गुरु-परम्परा"
महावातर बाबा (जिन्हें त्र्यम्बक बाबा और बाबाजी महाराज भी कहते हैं) की परम्परा। महावातर बाबा- लाहिडी महाशय- युक्तेश्वर गिरी- १। सत्यानन्द गिरी २। परमहंस योगानंद (जिनकी आत्मकथा "योगी कथामृत" / "Autobiography of a Yogi" एक विश्वप्रसिद्ध पुस्तक है)। सत्यानन्द गिरी के शिष्य थे पहाड़ी बाबा।
यहाँ आश्रम में वर्तमान में पहाड़ी बाबा के तीन शिष्य रहते हैं- निवारण बाबा, गंगा बाबा और कमल बाबा.
निवारण बाबा (स्वामी निरजानन्द)
गंगा बाबा
कमल बाबा
(अभी अक्तूबर 2010 में कमल बाबा ने देह त्यागा.)
"पहाड़ी बाबा नेहरूजी के साथ"
"यज्ञ-शाला"
"हवन-कुंड"
"ऐतिहासिक स्थल"
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