प्रसंग-3

ताम्बे का कड़ा बनाम गुरूशक्ति

श्री कल्याण कुमार राय रचित पुस्तक परमहँस पहाड़ी बाबा (स्मृतिकथा)“ से साभार

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हस्तरेखा विज्ञान एवं कुण्डली विचार आदि में भी बाबा का स्वच्छ ज्ञान था, लेकिन फैलाया हुआ हाथ सामने लेकर बहुत देर तक उसका पर्यवेक्षण करते हुए नहीं देखा गया कभी। प्रायः सामने प्रसारित हाथ पर एक नजर डालकर ही कवच या रत्न धारण करने का विधान दे दिया करते थे, परन्तु सभी क्षेत्र में कवच या रत्न आदि धारण करने का निर्देश देते ही थे— ऐसी बात नहीं। उदाहरण के लिए मेरी ही एक व्यक्तिगत घटना कही जा रही है।

एक बार क्या मन में आया, दाहिने हाथ में ताम्बे का एक कड़ा पहन लिया था। एक दिन वह बाबा की नजर में पड़ गया। पूछ बैठे, “यह क्या है?” डरते हुए मैंने उत्तर दिया, “सुना है कि ताम्बे का कड़ा धारण करने से अनेक ग्रहों की नजर से बचा जा सकता है, इसलिए पहन लिया है।”

सुनकर बाबा एकदम बिगड़ गये। जोर से बोले, “शाला, तेरा गुरूशक्ति पर विश्वास नहीं है? इस शरीर का आश्रय मिला है, यही तो बहुत है। ताम्बे का कड़ा ग्रहों से तेरी रक्षा करेगा? कहते हुए खींचकर कड़े को निकालकर जंगल में उन्होंने फेंक दिया।

हालाँकि किसी समय उन्हीं के हाथों से मिली हुई रूद्राक्ष की एक माला, जिसे कुछ दिन उनके गले में देखा था, मेरे पास एक बहुमूल्य वस्तु के रूप में रखी हुई है।

इसी “गुरूशक्ति में विश्वास” के प्रसंग में सतीदी (सती चैटर्जी) के गिनीपिग की घटना लिखने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता।

 

(टिप्पणीः यहाँ यह साबित होता है कि असली चीज है किसी के मन में आस्थाऔर विश्वासका संचार करना। जिसकी मानसिक/आध्यात्मिक उन्नति कम हुई हो, उसके मन में आस्था/विश्वास जगाने के लिए कवच या रत्न की जरुरत पड़ सकती है, मगर जिसका मानसिक/बौद्धिक/आध्यात्मिक स्तर ऊँचा हो, उन्हें इन बाहरीचीजों की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए। सम्भवतः पहाड़ी बाबा ऐसा ही मानकर चलते होंगे।)

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