पर्यटन


 

अध्यात्म में जिन्हें रुचि है, उन पर्यटकों के लिए बिन्दुधाम एक आदर्श स्थल है। यहाँ एक वानप्रस्थ  आश्रमहै, जहाँ जीवन के तीसरे चरण में पहुँच चुके लोग यहाँ कुछ समय रहकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं।

जिनकी रुचि कला में है, वे यहाँ मन्दिर की मूर्तियों को ध्यान से निहार सकते हैं। कला का पहला नमूना तो सूर्य रथ है। मुख्य मन्दिर के सामने की दीवार पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती और महादुर्गा की मूर्तियाँ बनी हैं। पीछे की दीवार पर भक्ति के नौ रूप दर्शाये गये हैं। दाहिनी ओर की दीवार पर शिव के कुछ रूप तथा बाँई ओर की दीवार पर वाद्य बजाती, नृत्य करती नारी की मूर्तियाँ बनी हैं। मुख्य मन्दिर के ग्रिलमें बनी कमल अर्पित करती और शंख बजाती नारी आकृति भी कलात्मक है। शिव पंचायतनी, योगेश्वरी, वासुदेव और राणी सती मन्दिरों के द्वार के ऊपर सुन्दर तथा कलात्मक पेण्टिंग्स बने हैं (इनके मूल चित्रकार का नाम वैद्यनाथथा, बाद में किसी और चित्रकार ने इनके ऊपर तूली फेरी है)। प्राँगण के पश्चिम की ओर बना गोलाकार द्वार तो सुन्दर है ही, इसके दोनों तरफ शिव के दो प्रसिद्ध रुपों— अर्द्धनारीश्वर तथा ताण्डव नृत्यरत— को कलात्मक ढंग से मूर्तियों में उकेरा गया है। यज्ञशाला के अन्दर रणचण्डी दुर्गा की एक भव्य प्रतिमा है तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भी मूर्तियाँ स्थापित हैं। हाल में यज्ञशाला की दीवारों पर दुर्गा के नौ रूपों को उकेरा गया है। गुरू मन्दिर का प्रवेशद्वार भी कम कलात्मक नहीं था, हालाँकि अब यहाँ कुछ पुनर्निर्माण का काम चल रहा है, जिस कारण पुराने द्वार को हटा दिया गया है।

जिन पर्यटकों को एडवेंचर में रुचि है, वे बिन्दुवासिनी पहाड़ के पीछे रेल लाईन पर चलते हुए राजमहल की पहाड़ियों पर ट्रेकिंग करने जा सकते हैं। वहाँ खदानों में वे प्रसिद्ध ब्लैक स्टोनभी बनते हुए देख सकते हैं। हालाँकि प्रकृतिप्रेमियों को ये खदान पहाड़ के सीने पर घाव समान लगेंगे।

जिनकी रुचि लोक-जीवन में है, वे राजमहल की पहाड़ियों की चोटियों पर रहने वाले “पहाड़िया” तथा तलहटी में रहने वाले “सन्थाल” लोगों की जीवन शैली का अध्ययन कर सकते हैं।

सिर्फ मनोरंजन में रुचि रखने वाले पर्यटकों का पहली जनवरी के दिन बिन्दुवासिनी पहाड़ के पीछे की वादियों में स्वागत है। हालाँकि कंक्रीट निर्माण (बी.एस.के. कॉलेज के भवन आदि) और बस्ती बस जाने के कारण वादी के क्षेत्रफल तथा प्राकृतिक सौन्दर्य में कमी आ गयी है; फिर भी, पहली जनवरी के दिन वनभोज मनाने वालों का यहाँ मेला लग ही जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में पर्यटन विभाग की ओर से यहाँ सड़क बनी है, कैफेटेरिया तथा यात्री निवास भी बने हैं। एक सामुदायिक विवाह भवन भी बना है। जलपान की एक दुकान यहाँ बहुत पहले से थी, अभी हाल-फिलहाल जलपान एवं पूजन-सामग्रियों की कुछ और दुकानें बन गयी हैं।

भविष्य में हनुमान पदचिन्ह वाले स्थल पर महावतार बाबा (बोल-चाल में बाबाजी महाराज’) की एक ध्यानमग्न प्रतिमा स्थापित कर एक साधना केन्द्र बनाने की परिकल्पना है। इसके अलावे माँ बिन्दुवासिनी पर चलचित्र बनाने के लिए एक पटकथा (स्क्रिप्ट) भी बिन्दुधाम आश्रम में (गंगा बाबा के पास) रखी हुई है। दुःख की बात है कि ये दोनों परिकल्पनाएं अब तक पूरी नहीं हुई हैं।

(2024)

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