रविवार, 19 जुलाई 2009

"अक्षय कूप"


सीढियों के ठीक बगल में यह जो कुँआ आपको दिखेगा, इसके बारे में किंवदंती है कि एक बार इस क्षेत्र में सुखाड़ पड़ा था, सभी तालाब और कुँए सुख गए थे; तब "पहाडी बाबा" ने (जिनके बारे में आगे बताया जाएगा) माँ बिन्दुवासिनी का नाम लेकर एक 'बताशा' इस कुँए में डाल दिया था। तब से इस कुँए का पानी दुधिया और मीठा हो गया और इसका गर्मियों में सुखना भी बंद हो गया। आज लगभग पन्द्रह हजार लीटर जल प्रतिदिन इस कुँए से निकालकर बरहरवा के घरों में पहुंचाया जाता है। इतना ही नही, चैत्र के महीने में एक माह तक चलने वाले 'रामनवमी मेले' की जलापूर्ति भी इसी कुँए से होती है।

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