प्रसंग-4

मृत गिनीपिग का जिन्दा होना

श्री कल्याण कुमार राय रचित पुस्तक परमहँस पहाड़ी बाबा (स्मृतिकथा)“ से साभार

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बात ईस्वी 1965 की है। उस समय मैं साहेबगंज कॉलेज का छात्र था। सतीदी (सती चैटर्जी) भी साहेबगंज में रहती थीं।

एक दिन एक साथ हम लोग बरहरवा आ रहे थे। सतीदी के हाथ में टँगे पिंजड़े में दो गिनीपिग थे। प्रचण्ड धूप में बरहरवा स्टेशन से निकल कर रेल-लाईन होकर हम लोग बिन्दुधाम आ रहे थे। भयंकर गर्मी के मारे दोनों नाजुक प्राणी निढाल हो गये थे।

सीढ़ियों से पहाड़ चढ़कर मातृमन्दिर में प्रणाम कर हम सीधे बाबा के पास पहुँचे। उनके पास पिंजड़े को रखकर प्रणाम करते ही पिंजड़े की ओर देख बाबा बोल पड़े, “तेरे गिनीपिग ने तो दम तोड़ दिया।” सही में, दोनों का शरीर निश्चल था।

सतीदी तो रूआँसी हो गयीं। बाबा को भेंट देने के लिए लाये गये दो सुन्दर प्राणियों की यह हालत!

जो भी हो, उनके मुँह में पानी डाला गया और धीरे-धीरे पानी के छींटे मारे जाने लगे। कुछ देर ऐसा करने के बाद उनमें से एक थोड़ा हिला। क्रमशः उसमें जीवित होने के लक्षण प्रकट हुए, लेकिन दूसरे में किसी हाल में कोई परिवर्तन नहीं दिखा। उसका शरीर अकड़ गया था।

अब तो दीदी सचमुच रोने लगीं। दोनों गालों पर आँसुओं की धारा बहने लगी। उसी के साथ शुरू हुआ बाबा पर दवाब, “इसे भी बचा लीजिए, आप चाहने से ही बचा सकते हैं...।”

बाबा जितनी बार यह कहते कि ‘ऐसा कभी होता है रे पगली, मुर्दा को कभी जिन्दा किया जा सकता है? दीदी उतना ही जिद करने लगतीं। बोलीं, “कुछ नहीं सुनूँगी— इसे बचाना ही होगा। अगर नहीं बचा सकते, तो फिर गुरूशक्ति किसलिए?

अब बाबा का मुख गम्भीर हो गया। बोले, “इतनी बड़ी बात बोल दी माँ? हाँ, गुरूशक्ति के लिए असाध्य कुछ भी नहीं है। एकमात्र गुरूकृपा से ही यह मरा हुआ गिनीपिग बच जायेगा, लेकिन चार दिनों के लिए।”

बात समाप्त कर बाबा शान्त हो गये। उन्होंने अपनी दोनों आँखें बन्द कर लीं। बीच-बीच में उनके शरीर में विक्षेपण देखा जाने लगा। इधर मृत प्राणी के शरीर में भी स्पन्दन होने लगा। लगभग पन्द्रह मिनट का मामला था। गिनीपिग शरीर को झाड़ता हुआ उठ बैठा। उधर बाबा की भी आँखें खुल गयीं।

घटना का अन्तिम अंश भी कम चमत्कारपूर्ण नहीं है। ठीक पाँचवे दिन की सुबह देखा गया— वह अभागा प्राणी पिंजड़े में मरा पड़ा था, शरीर अकड़कर लकड़ी के समान कठोर हो गया था।

 

(टिप्पणीः प्रसंगवश, बता दिया जाय कि बाबा पशु-पक्षियों से बहुत प्यार करते थे। उनके पास एक कुत्ता तो रहता ही था, एक जोड़ा मोर भी पहाड़ पर रहता था, जो बाबा के पुकारने पर आ जाता था। इनके अलावे नीलगाय तथा और भी कुछ पशु-पक्षी पहाड़ पर रहते थे।)

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