प्रसंग-5

अमावस्या की मध्यरात्रि में 108 कमल फूल

श्री कल्याण कुमार राय रचित पुस्तक परमहँस पहाड़ी बाबा (स्मृतिकथा)“ से साभार

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पहले ही कहा गया है कि उनके दुर्लभ संग में रहकर कुछ ऐसी भी घटनाओं का साक्षी बना, जिन्हें साधारण रूप से अलौकिक ही कहा जायेगा, परन्तु उनके पास जिस किसी ने भी कुछ अलौकिक कर दिखाने का अनुरोध किया, उसे तिरस्कृत ही होना पड़ा। कोई चमत्कार दिखाकर लोगों को स्तम्भित कर देना वे कभी नहीं चाहते थे। फिर भी, छिट-पुट कुछ ऐसी घटनाएँ घट ही जाती थीं, जिन्हें देखकर या सुनकर आश्चर्य-चकित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। प्रासंगिक समझकर ऐसी कुछ घटनाएँ लिखी जा रहीं हैं।

मातृमन्दिर में हर अमावस्या तिथि की रात में तंत्रविहित देवीपूजा की जाती है। एक बार अमावस्या की ऐसी ही एक गहन रात्रि में बाबा देवी पूजन में बैठे थे। संकल्प पाठ के समय उन्होंने 108 कमल चढ़ाने का संकल्प लिया। जिन लोगों ने पूजा का आयोजन किया था, वे चौंक पड़े। बाबा ने 108 कमल चढ़ाने का संकल्प तो ले लिया, लेकिन इसके बारे में किसी से कुछ कहा तो नहीं था! अब आधी रात में कमल मिले, तो कहाँ से?

जो भी हो, पूजा का क्रम चलने लगा। महास्नान भी समाप्त होने जा रहा था। अब सभी उपचार देवी को समर्पित किये जाने की बारी थी। सभी कमल के बारे में चिन्तित थे।

इतने में सीढ़ियों से ऊपर आया एक अपरिचित आगन्तुक। बिलकुल काला, जैसे अमावस्या के काले अन्धकार को शरीर पर लपेटकर अन्धकार के बीच से ही निकला हो। उसके सिर पर एक डलिया थी। किसी की मदद से डलिया को उतारकर मन्दिर के दरवाजे पर रखा गया। सभी लोगों ने विस्मित होकर देखा— उसमें कमल के ताजे फूल रखे थे। एक-एक कर गिनकर फूलों को पुष्पपात्र में रखा जाने लगा। ठीक 108 ही फूल थे— एक भी कम-बेशी नहीं।

बाबा का चेहरा निर्मल मुस्कुराहट से खिल उठा। सभी की नजर या ध्यान फूलों की तरफ चला गया था। कुछ देर बाद आगन्तुक का ध्यान लोगों को आया। आश्चर्य की बात— न तो वह आगन्तुक मिला, न ही उसकी डलिया! अमावस्या के गहन अन्धकार को भेदकर वह जैसे आविर्भूत हुआ था, वैसे ही मानो उसी अन्धकार में वह विलीन हो गया हो!

     बाबा से इस रहस्य के बारे में पूछने पर मृदु तिरस्कार के सिवा कोई उत्तर नहीं मिला। न जाने साधक के सत्य-संकल्प को पूर्ण करने के लिए माँ ने किस भैरव को भेजा था!

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