गुरू परम्परा


    कहते हैं कि योगी के रूप में महावतार बाबा (जिन्हें ‘त्र्यम्बक बाबा’ और बोल-चाल में ‘बाबाजी महाराज’ भी कहते हैं) का स्थान भगवान श्रीकृष्ण के बाद ही आता है। वे अजर हैं
, अमर हैं— उनकी आयु अज्ञात है। हिमालय में यदा-कदा वे देखे जाते हैं और हृदय से पुकारने पर प्रत्युत्तर देते हैं तथा किसी-न-किसी रूप में प्रकट होते हैं।

आधुनिक युग में भाग-दौड़ का जीवन जीते हुए तथा गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए मुक्ति पाने का मार्ग बताने के लिए उन्होंने अपने पिछले जन्म के शिष्य श्यामाचरण लाहिड़ी को चुना। लाहिड़ी महाशय को उन्होंने क्रियायोगकी दीक्षा दी। लाहिड़ी महाशय के सैकड़ों शिष्यों में से दो प्रमुख शिष्य थे— भूपेन्द्र सान्याल तथा युक्तेश्वर गिरी। इसी प्रकार, युक्तेश्वर गिरी के दो प्रमुख शिष्य रहे— परमहँस योगानन्द तथा सत्यानन्द गिरी। योगानन्द को विदेश में जाकर योग का प्रचार करने का कार्य मिला था। अतः संयुक्त राज्य अमेरीका के कैलिफोर्निया राज्य के लॉस एंजेल्स नगर में माउण्ट वाशिंगटन पर उन्होंने 1925 में सेल्फ रियलायजेशन फेलोशिपकी स्थापना की। उनकी एक और संस्था का नाम योगदा सत्संग सोसायटीहै। उनकी आत्मकथा “योगी कथामृत” (अंग्रेजी में “Autobiography of a Yogi) एक विश्वप्रसिद्ध पुस्तक है। 1985 तक इसका चौदह भाषाओं में अनुवाद हो चुका था। विश्व के कई विश्वविद्यालयों में इसे विभिन्न विषयों के सहायक पुस्तक के रूप में शामिल किया गया है।

सत्यानन्द गिरी को देश में रहकर समाज सेवा करने का कार्य मिला था। इन्हीं सत्यानन्द गिरी ने बँगाल के मेदिनीपुर जिले के बादलपुर ग्राम में पहाड़ी बाबा को देखा। देखते ही उन्होंने बाबा की योग्यता को पहचान लिया। इस प्रकार, पहाड़ी बाबा ने सत्यानन्द गिरी के सान्निध्य में रहकर योग की दीक्षा ली। (तंत्र में वे पहले से दीक्षित थे।) इसी के साथ उन्होंने समाज के दबे-कुचले लोगों के उत्थान का व्रत लिया। अपने इस व्रत को पूरा करने के लिए वे सन्थाल परगना के इस पिछड़े इलाके में आये।

पहाड़ी बाबा के प्रति श्रद्धा रखने वालों की संख्या हजारों है, उनके गृहस्थ शिष्यों की संख्या सैकड़ों है और उनके सन्यासी शिष्यों में प्रमुख हैं कमल बाबा, गंगा बाबा (दोनों बिन्दुधाम, बरहरवा में, जिनमें से कमल बाबा ने 2010 में देहत्याग किया), ‘अनुव्रताकल्याणी दी (सैंथिया में), रानी दी (कोलकाता में, अब नहीं रहीं), भुवनेश्वरानन्द (ब्रह्मचारी बाबा) और कृष्णानन्द (दोनों जयपुर में)। पहाड़ी बाबा के एक गुरूभाई ज्ञानानन्द थे, जिन्होंने बाद में पहाड़ी बाबा से ही दीक्षा ले ली थी और इस प्रकार वे बाबा के शिष्य भी बन गये थे। उन्हीं के एक शिष्य निरजानन्द (निवारण बाबा) भी बिन्दुधाम, बरहरवा में ही रहते थे।

पहाड़ी बाबा के एक तांत्रिक शिष्य वक्ताराम तथा एक फरसाधारी भक्त बिल्लट झा प्रसिद्ध थे।

    एक स्पेनिश दम्पत्ति ने बाबा से दीक्षा ली थी। कल्याण कोल (कल्याणनाम सम्भवतः बाबा ने दिया होगा) नामक ये यूरोपवासी तंत्र में अच्छा अधिकार रखते थे और कुछ समय पहले तक विशेष अवसरों पर सत्यायतन आश्रम, जयपुर में आते थे— ऐसा बताया जाता है।

(2024)

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