भूमिका



झारखण्ड राज्य के सन्थाल-परगना प्रमण्डल के अन्तर्गत साहेबगंज जिले में राजमहल की नीली पहाडि़यों की तलहटी में बसा एक छोटा-सा खुशहाल और जिन्दादिल कस्बा है- बरहरवा। बरहरवा पूर्व रेलवे का एक जंक्शन भी है; जहाँ से भागलपुर, मालदा और रामपुरहाट के लिए रेल लाईनें निकलती है। आगे ये रेल लाईनें क्रमशः पटना/दिल्ली, न्यू जलपाईगुड़ी/गौहाटी तथा बर्द्धमान/कोलकाता तक जाती हैं। साहेबगंज, मालदा और रामपुरहाट स्टेशन बरहरवा से कमोबेश दो घण्टे की रेल यात्रा की दूरी पर अवस्थित हैं। सड़क मार्ग से यह गोड्डा और दुमका से भी जुड़ा है।
                उल्लेखनीय है कि दिल्ली-कोलकाता को जोड़ने वाली बरहरवा जंक्शन होकर यह रेल लाईन 1890 के आस-पास बनी थी (वाया धनबाद वाली मेन लाईन से पहले)। रेलवे में आज इसे साहेबगंज लूप लाईनकहते हैं। बरहरवा से गुजरने वाली लम्बी दूरी की ट्रेनें हैं- ब्रह्ममपुत्र मेल, फरक्का एक्सप्रेस और दादर-गौहाटी। अन्य प्रमुख ट्रेनें हैं- भागलपुर-राँची (वनांचल), हावड़ा-गया (सुपरफास्ट), हावड़ा-जमालपुर (सुपर), सियालदह-मुगलसराय (अपर इण्डिया), हावड़ा-राजगीर (फास्ट पैसेंजर), इत्यादि।
                बरहरवा रेलवे स्टेशन से एक सर्पिल सड़क (बिन्दुधाम पथ) पर किलोमीटर भर चलकर बिन्दुवासिनी पहाड़के नीचे पहुँचा जा सकता है। इसी पहाड़ी पर महादुर्गा और महाकाली संयुक्त रुप से महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के साथ ‘‘बिन्दु’’ रुप में विराजमान है। माँ बिन्दुवासिनी के अलावे यहाँ हनुमानजी द्वारपाल तथा संकटमोचक के रुप में; शिवजी अपनी पंचायत (विष्णु, दुर्गा, सूर्य और गणेश के साथ); माँ अन्नपूर्णा शिव के साथ; राधा-कृष्ण और राणी सतीजी प्रतिष्ठित हैं। पहाड़ी के सामने की ओर 108 सीढि़याँ बनी हैं, जबकि पीछे की ओर मोटर के लायक सड़क बनी है। हरे-भरे खेतों के बीच टापू-सी उभरी हुई यह पहाड़ी अपने-आप में सुन्दर है; नेपथ्य में राजमहल की नीली पहाडि़यों की लम्बी शृँखला इसके वातावरण को और भी मनोरम बनाती है। यहाँ की आध्यात्मिक शान्ति तथा प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुभव यहाँ आकर ही किया जा सकता है। 

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