बरहरवा में कबूतरों तथा गौरेयों का बहुतायात में
पाया जाना यहाँ कि खुशहाली का द्योदत है। (जहाँ दाने होंगे, वहीं ये रहेंगे।) इसी
प्रकार, यहाँ सामाजिक-धार्मिक भेद-भाव का नहीं पाया जाना यहाँ की जिन्दादिली
और यहाँ किसी भी किस्म के उपद्रव (आतंकवाद, नक्सलवाद, रंगदारी इत्यादि) का नहीं पाया जाना यहाँ की
शान्ति की निशानी है।
ऐसा हो भी क्यों नहीं? इसका नैऋत्य कोण
(दक्षिण-पश्चिम) पहाडि़यों के कारण ऊँचा, भारी और बन्द है और इसी दिशा में ऊँचा चर्च है।
ईशान कोण (उत्तर-पूर्व)
नीचा और खुला-खुला है। यहाँ पीर बाबा का मजार है। यह जल का कोण है और मजार के पास
तालाब भी है। और-तो-और, गंगाजी भी इसी दिशा में है।
आग्नेय कोण
(दक्षिण-पूर्व) आग का कोना होता है; इस दिशा में शक्ति की दोनों देवियों- माँ काली तथा
माँ दुर्गा के प्राचीन पीठ हैं। फरक्का एनटीपीसी (बिजली- यानि अग्नि का रुप) भी
इसी दिशा में है।
रह गया वायव्य कोण
(उत्तर-पश्चिम)। यह वायु का कोना है। इस दिशा में माँ बिन्दुवासिनी तो प्रतिष्ठित
हैं ही, स्वयं ‘वायु’-पुत्र हनुमान बिलकुल इसी कोने में प्रतिष्ठित हैं।
जिस बस्ती के चारों कोनों
में देवी-देवताओं का वास हो; वास्तुशास्त्र के अनुसार जिसकी बसावट बिलकुल सही
हो, और
सबसे बड़ी बात, माँ बिन्दुवासिनी तथा ‘पहाड़ी बाबा’ की जहाँ कृपा हो,
वहाँ दुःख कैसा?
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