प्रसंग- 10

 

एक फकीर की भविष्यवाणी

श्री कल्याण कुमार राय रचित पुस्तक परमहँस पहाड़ी बाबा (स्मृतिकथा)“ से साभार

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बाबा के शिष्यवर्ग में समाज के सभी श्रेणियों के लोग थे। जैसे उच्च-शिक्षित सरकारी पदाधिकारी थे, वैसे निरक्षर मजदूर श्रेणी के लोग भी थे। जैसे धनी थे, वैसे गरीब भी। उनके शिष्यों में शिक्षक, प्रोफेसर, चिकित्सक, वकील और श्रमिक सभी वर्ग के मनुष्य थे। वे तो सभी के बाबा थे, उनके पास ऊँच-नीच का कोई भेद नहीं था। वे तो “सर्वत्र समदर्शनःथे।

उनके अगणित शिष्यों में से एक सम्भ्रान्त-वंशीया मुसलमान शिष्या भी थीं। बाबा से दीक्षित उच्चकोटि की यह साधिका एक अलौकिक घटना के माध्यम से बाबा के सम्पर्क में आयी थीं।

एक दिन बिन्दुवासिनी में बुर्का से आवृत्त यह महिला बाबा के पास पहुँचीं। बाबा के साथ एकान्त में बातचीत करने की इच्छा उन्होंने व्यक्त की। बाबा ने सौ कामों के बीच में भी समय निकालकर उनको बात करने के लिए अवसर दिया। बुर्के का आवरण उतारकर महिला ने उन्हें प्रणाम कर अपने जीवन की एक घटना बतायी।

बहुत दिनों पहले उनके घर में एक फकीर साहब पहुँचे थे। वृद्ध फकीर की दाढ़ी और बाल सफेद थे, गले में थीं स्फटिक की मालाएं और हाथ में एक लाठी। वे एक लम्बा चोगा पहने हुए थे। सौम्य-दर्शन फकीर को देखकर महिला प्रभावित हो गयीं और उन्होंने आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। थोड़ी-सी मिठाई सहित जलपान करने के बाद जब वे जाने के लिए उद्यत हुए, तो महिला ने उनसे पुनः दर्शन देने की प्रार्थना की। इस पर फकीर साहब ने उनसे कहा कि उनका दर्शन और अब कभी नहीं मिलेगा। उनका आगमन एक सन्देश देने के लिए हुआ है। लगभग तीन वर्षों के बाद एक पहाड़ पर अवस्थित मातृमन्दिर में आयेंगे— वही महिला के गुरू होंगे।

दैववाणी के समान यह सन्देश सुनाकर फकीर चले गये। महिला भी इतने दिनों के अन्तराल में इस बात को भूल गयी थीं। लगभग तीन साल के बाद उन्होंने सुना कि बरहरवा बिन्दुवासनी पहाड़ पर एक साधूबाबा आये हुए हैं। उनको तीन साल पहले की गयी फकीर की भविष्यवाणी याद आ गयी। साथ-ही-साथ साधूबाबा के दर्शन की प्रबल प्रेरणा मन में वे अनुभव करने लगीं। इसलिए सम्भ्रान्त-वंशीया पर्दानशीन मुसलमान महिला साधूबाबा के दर्शन के लिए पहुँची थीं।

बाबा ने सब कुछ सुना। इस प्रकार, अचानक ख्याल के वश में आकर खुद को गुरू के रूप में वरण करने के लिए उन्होंने महिला को मना किया। फिर भी, वह महिला कई बार उनके पास आयीं और दीक्षा के लिए व्याकुल भाव से प्रार्थना करती रहीं। उनकी अन्तरात्मा जैसे उन्हें बार-बार कह रही थी कि यही उनके दैव-निर्दिष्ट सद्गुरू हैं!

अन्ततः उनकी व्याकुलता से करूणामय का अन्तर द्रवित हुआ। एक शुभ दिन में उस भाग्यवती को लाहिड़ी बाबा प्रदर्शित क्रियायोगकी दीक्षा मिल गयी। आगे चलकर महिला ने साधना की अत्यन्त ऊँची अवस्था प्राप्त की थी। सांसारिक हजार कामों के बीच, अपनी सम्प्रदायगत उपासना का पालन करने, रमजान के समय नियमित रोजा रखने इत्यादि के साथ-साथ गुरू प्रदर्शित इस योगक्रिया के अनुशीलन में तनिक भी शिथिलता वे नहीं बरतती थीं। दीक्षा लेने के साथ-ही-साथ वे बिलकुल शाकाहारी हो गयी थीं। बाबा के लिए अपने बगीचे की सब्जियाँ प्रायः भेजती थीं— पवित्र गंगाजल से धो कर।

 

     एक बार ज्ञानानन्द जी ने बाबा के आदेश पर उनके घर में आतिथ्य ग्रहण किया था। ज्ञानानन्द जी के मुँह से उनकी भक्तिपूर्ण आतिथ्य का विवरण सुनकर आश्चर्य लगा था। उस परिपाटी रूप से साधू सेवा में उनका आन्तरिक श्रद्धाभाव प्रकट हो उठा था।

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